शुक्रवार, 13 मई 2011

अब क्या करे अवनी?


"अवनी!अवनी उठ जा बेटा स्कूल जाने का समय हो गया है,"
मगर अवनी को तो मानो कुछ सुनाई ही नहीं पड़ रहा है. तभी दरवाजा खोलकर अनीता कमरे में आ गई और प्यार से माथा चूमकर अवनी से कहा-
"बेटा अब तो उठ जा और अवनी, उसे  तो मानो इसी बात का इंतजार था झट से उठ कर अनीता की गोद में बैठ गई .
अवनी,अनीता की छ: साल की बेटी है.
"मां मुझे आज स्कूल नही जाना ,"
"नहीं जाना,लेकिन क्यो? आज तो मेरी गुडिया क जन्मदिन है और मां ने खीर भी बनाई है ,खायेगी ना मेरी गुड़िया?"
" मुझे नहीं खाना" और अवनी नाराज होकर कमरे से बाहर आ गई ,पीछे-पीछे  अनीता भी आई,क्या हुआ?नाराज क्यों हो गई मेरी अवनी?
"तुम हर बार मेरे जन्मदिन पर बस खीर बना देती हो, मेरे सारे दोस्तों के यहां तो ना जाने क्या-क्या बनता है? बहुत बड़ा   सा केक भी आता है,नये-नये कपड़े भी आते हैं और तुम हो तो बस खीर बना देती हो और हो गया जन्मदिन."
अनीता,अवनी की बातें सुनकर मुस्कुराई और अन्दर जाकर एक लाल रंग का फ़्राक लाकर अवनी को दिया
"मैंने अपने हाथों से बनाया है आज मेरी प्यारी बेटी इसे पहन कर ही स्कूल जायेगी और शाम को मैं अपनी अवनी के लिये केक भी लाऊंगी."
"नहीं चाहिए मुझे केक और मुझे ये फ्राक भी नहीं पहनना,बाजार से लाओगी तभी पहनूंगी" और जाकर अपनी स्कूल ड्रेस उठा लाई अनीता अब कहती भी क्या तैयार करके स्कूल छोड़ आई सोचा शाम को अवनी को मना लेगी.लेकिन ये क्या? शाम को घर आते ही अवनी की नजर मां के बनाए हुए छोटे से केक पर पड़ी और वो रो पड़ी ये कोई केक है?ऐसा होता है क्या केक? नहीं चाहिए मुझे, और वो रोते हुए कमरे में चली गई,पीछे-पीछे अनीता उसे मनाने गई और वादा किया कि अगले जन्मदिन पर वो उसे अच्छे-अच्छे कपड़े और बहुत सारे खिलौने लाकर देगी.
अनीता की आंखों में आंसू थे,सच ही है वो कहां अवनी के लिये कुछ ला पाती है,उसका गुस्सा तो जायज है बच्ची ही तो है सबको देखकर उसका भी मन करता होगा,अनीता कमरे से बाहर आ गई और अवनी के लिये खाना निकालने लगी. अचानक किसी की आवाज़ से अवनी का ध्यान टूटा. आंखें नम थीं. आज भी अवनी का जन्मदिन है. लेकिन वो अपनी मां के पास न हो कर घर से दूर, पढाई कर रही है. आज लगता है कि जाने-अनजाने में कितनी बार उसने अपनी मां का दिल दुखाया, लेकिन बदले में हमेशा उसे तमाम चीज़ों के रूप में मां का अविरत प्यार ही मिला.
आज अवनी का मन कर रहा है, कि काश! बचपन लौट आये, और वो अपनी हर ग़लती के लिये मां से माफ़ी मांग ले.
                       फोन की घंटी ने अवनी की तंद्रा तोड़ी- "हैलो... मां !!" अवनी रो पड़ी

चित्र: गूगल सर्च से साभार 

3 टिप्‍पणियां:

umesh ने कहा…

ब्लॉग जगत से जुड़ने के लिये बधाइयां. कहानी अच्छी लगी. इसी तरह लिखती रहें. शुभकामनाएं.

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

बाल मनोविज्ञान पर अच्छी लघु-कथा. कथावस्तु पर पकड़ बनाने, और रचना के मर्म को छूने के लिये लेखन में निरन्तरता आवश्यक है, इसलिये नियमित लिखती रहें. शुभकामनाएं.

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

बालमन की सच्ची झांकी प्रस्तुत करती है यह लघु कथा।
..बहुत बधाई।