इस जीवन में बैठे ठाले ऐसे क्षण भी आ जाते हैं
जब हम अपने से ही, अपनी बीती कहने लग जाते हैं.
तन खोया खोया सा लगता, मन उर्वर सा हो जाता है,
कुछ खोया सा मिल जाता है, कुछ मिला हुआ खो जाता है.
लगता सुख दुख की स्मृतियों के कुछ बिखरे तार बुना डालूं,
यों ही सूने में अन्तर के कुछ भाव-अभाव सुना डालूं.
कवि की अपनी सीमाएं हैं, कहता जितना कह पाता है,
कितना भी कह डाले, लेकिन अनकहा अधिक रह जाता है.
यों ही चलते-फिरते मन में बैचेनी सी क्यों उठती है?
बसती बस्ती के बीच सदा सपनों की दुनियां लुटती है.
जो भी आया था जीवन में, यदि चला गया तो रोना क्या?
ढलती दुनिया के दानों में सुविधा के तार पिरोना क्या?
जीवन में काम हज़ारों हैं, मन रम जाये तो क्या कहना!
दौड़ धूप के बीच एक क्षण थम जाये तो क्या कहना!
कुछ खाली-खाली तो होगा, जिसमें निश्वास समाया था,
उससे ही सारा झगड़ा है, जिसने विश्वास चुराया था.
फिर भी सूनापन साथ रहा तो गति दूनी करनी होगी.
सांचे के तीव्र विवर्तन से मन की पूंजी भरनी होगी.
जो भी अभाव भरना होगा, चलते चलते भर जायेगा,
पथ में गुनने बैठूंगा तो जीवन दूभर हो जायेगा.
जब हम अपने से ही, अपनी बीती कहने लग जाते हैं.
तन खोया खोया सा लगता, मन उर्वर सा हो जाता है,
कुछ खोया सा मिल जाता है, कुछ मिला हुआ खो जाता है.
लगता सुख दुख की स्मृतियों के कुछ बिखरे तार बुना डालूं,
यों ही सूने में अन्तर के कुछ भाव-अभाव सुना डालूं.
कवि की अपनी सीमाएं हैं, कहता जितना कह पाता है,
कितना भी कह डाले, लेकिन अनकहा अधिक रह जाता है.
यों ही चलते-फिरते मन में बैचेनी सी क्यों उठती है?
बसती बस्ती के बीच सदा सपनों की दुनियां लुटती है.
जो भी आया था जीवन में, यदि चला गया तो रोना क्या?
ढलती दुनिया के दानों में सुविधा के तार पिरोना क्या?
जीवन में काम हज़ारों हैं, मन रम जाये तो क्या कहना!
दौड़ धूप के बीच एक क्षण थम जाये तो क्या कहना!
कुछ खाली-खाली तो होगा, जिसमें निश्वास समाया था,
उससे ही सारा झगड़ा है, जिसने विश्वास चुराया था.
फिर भी सूनापन साथ रहा तो गति दूनी करनी होगी.
सांचे के तीव्र विवर्तन से मन की पूंजी भरनी होगी.
जो भी अभाव भरना होगा, चलते चलते भर जायेगा,
पथ में गुनने बैठूंगा तो जीवन दूभर हो जायेगा.
0 दुष्यंत कुमार
4 टिप्पणियां:
कुछ खाली-खाली तो होगा, जिसमें निश्वास समाया था,
उससे ही सारा झगड़ा है, जिसने विश्वास चुराया था.
बहुत सुन्दर रचना चुनी है आपने. दुष्यंत कुमार मेरे भी प्रिय कवि हैं.
बहुत अच्छी रचना है,आपको बधाई।
जीवन में काम हज़ारों हैं, मन रम जाये तो क्या कहना!
दौड़ धूप के बीच एक क्षण थम जाये तो क्या कहना!
मार्कण्ड दवे।
http://mktvfilms.blogspot.com
अपने प्रिय कवियों की अच्छी-अच्छी कवताओं को संग्रहित करना, उसका प्रचार-प्रसार करना उनके प्रति सच्ची शब्दांजलि है। देखें इस ब्लॉग में आगे आपकी पसंत कौन सी है!
इतनी सुंदर रचना के बाद और भी रचनाओं की उम्मीद में हैं हम लोग
कहाँ हो ??
और हाँ तस्वीर लगा ली उस के लिये धन्यवाद बच्ची :)
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